सामाजिक भावनात्मक कौशल और अभिभावक


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“पारिवारिक जीवन भावनात्मक कौशल सीखने के लिए हमारा पहला स्कूल है,” ग्राउंडब्रेकिंग किताब इमोशनल इंटेलिजेंस के लेखक डैनियल गोलेमैन यह कहते हैं।

संशोधन यह बताता है की, एक बच्चे के जीवन पर उसके घर और घर के माहौल का गहरा प्रभाव होता है। साथ ही साथ अभिभावकों की बच्चों के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बच्चों के विकास के लिए अभिभावकों ने क्या क्या करना चाहिए इसपर हजारो रिसोर्स हमें पलक झपकते इंटरनेट पे मिल जाते है। पर जिन अभिभावकों से यह अपेक्षा होती है की वह अपने बच्चो के सामाजिक और भावनात्मक कौशल को विकसित करने के लिए सहयोग करे; उन अभिभावकों के सामाजिक और भावनात्मक कौशल के विकास के लिए क्या कोई जगह (प्लेटफार्म) होती है या फिर कोई जगह (प्लेटफार्म) होनी जरुरी है? इस पर जब हमने समझ बनाने की शुरवात की तब अभिभावक और अपनी शाला फाउंडेशन के माध्यम से जो जानकारी सामने आयी वह यहाँ पर हमने रखने की कोशिश की  है। 

‘अपनी शाला फाउंडेशन’ मुंबई में पिछले ८ साल से विद्यार्थी, शिक्षक और अभिभावकों में सामाजिक और भावनात्मक कौशल विकसित करने की कोशिश कर रहे है। CASEL (Collaborative for Academic, Social,and Emotional Learning) अपने संशोधन में यह कहता है की, जो अभिभावक भावनात्मक रूप से अपने स्वयं के रिश्तों में सक्षम होते हैं, वे अपने बच्चों को भी उनके भावनात्मक चुनौतियां में मदद करने में अधिक सक्षम होते है। बच्चे स्कूल के बाद अपना ज्यादा समय घर पे बिताते है। घर के वातावरण का और घर में रहने अले लोगोंका उनपर अधिक प्रभाव होता है। इसको ध्यान में रखते हुए, सामजिक और भावनात्मक कौशल बच्चे के वातावरण में पूरी तरह से लेकर आने के लिए अपनी शाला ने शिक्षकों के साथ अभिभावकों से भी मिलना शुरू किया। जब अपनी शाला ‘अभिभावक’ यह नाम से संबोधते है तब किसी एक जेंडर तक मर्यादित नहीं रहते, और नाही सिर्फ माँ या पिता तक मर्यादित रहते है। बच्चे के साथ ज्यादा वक़्त बिताने वाली व्यक्ति, बच्चे को सँभालने वाली हर एक व्यक्ति को विचार में लेते है। 

शुरआत में अभिभावक से बात करते वक्त “घर पर वातावरण कैसा हो?” इसपर काफी चर्चाएं और प्रक्षिशण  उनके लिए आयोजित किए गए।  इन चर्चाओं के दौरान ये सामने आया, “जब अभिभावकों से यह उम्मीद की जा रही है की बच्चो से बात करते वक़्त वह अपने भावनाओं को संभाले, तब वह कैसे सँभालने चाहिए उस पर किसी भी तरह का प्रशिक्षण या सहयोग उनको नहीं मिला है और ना ही अभी मिल रहा है”।  तब हमें ज्ञात हुआ की, किसी भी तरह की उम्मीद अभिभावक से करने से पहले उनके लिए ऐसी जगह बनाना बहुत जरुरी है जहाँ पर वो अपने सामाजिक और भावनात्मक कौशल के ऊपर काम कर सके। इसको ध्यान में रखते हुए अपनी शाला ने अभिभावक के साथ होने वाली चर्चाओं में इस प्रक्षिशण का समावेश किया।

अपनी शाला २ महीने में एक बार और कुछ जगह पर माह में एक बार, जैसे अभिभावक जुड़ सकते है उनके सहूलियत को ध्यान में रखते हुए इन प्रशिक्षण का आयोजन करते है।  इन प्रशिक्षण में सामजिक भावनात्मक कौशल क्या है उसे सरल भाषा में अभिभावक के सामने रखते है, इन कौशल को खुद की जिंदगी में कैसे लाया जा सकता है और बच्चो को भी यह कौशल विकसित करने के लिए कैसे सहयोग किया जा सकता है उसपर ध्यान दिया जाता है।  यह प्रशिक्षण कुछ अभिभावक ५ साल से तो कुछ अभिभावक २ या ३ सालसे ले रहे है।  

 

यह प्रक्षिक्षण क्या सच में अभिभावक के लिए मददगार हो रही है, इसे समझने के लिए हमने एक छोटासा सर्वेक्षण किया।  इस सर्वेक्षण में हमने कुछ अभिभावक को निचे दिए गए ३ सवाल पूछे :-

  1. सामाजिक और भावनात्मक शिक्षा के यह प्रशिक्षण उनके लिए कैसे रहे?
  2. इस प्रशिक्षण से उनको कोई फायदा हुवा क्या या फिर कोई बदलाव उन्होंने अपनी जिंदगी में देखा क्या? 
  3. इस प्रशिक्षण से पता चली बातों को आप अपने दिनचर्या में कैसे लेकर आते हो? 

जब हमने अभिभावकों से साथ बातचीत की तब लगभग सभी अभिभावकों ने बताया की, उनकी सामाजिक और भावनात्मक कौशल की जानकारी में वृद्धि हुई है, उनकी समझ और अधिक गहरी हुई है।  ३ अभिभावकों ने बताया की, इस प्रशिक्षण के वजह से, वह अपने भावनाओं को अच्छे से समझने लगे और उसको नेविगेट करके उन्होंने अपने बच्चो के साथ, घरवालों के साथ उनका रिश्ता और भी गहरा और स्वास्थपूर्ण किया। इस बातचीत के दौरान उन्होंने बताया की :- 

  • “मुझे ५ साल हुए, मै इस प्रशिक्षण का भाग हूँ।  हर साल स्कूल में अलग अलग तरीको से सामाजिक और भावनात्मक शिक्षा के बारे में समझाया जाता है। मै पहले अपने बच्चों को बहुत मारती थी, घरवालों से लड़ाई भी बहुत होती थी। अभी मै अपने आप को समझती हु और दूसरोंको समझने की कोशिश करती हु”। 
  • “मैं छोटी-छोटी बातों के लिए परेशान हो जाती थी, समझ नहीं पाती था कि अपने परिवार में कैसे मदद करूं। इस वजह से मेरे पति और मेरे बीच में झगड़े होते थे, लेकिन इन सत्रों के बाद मैं स्थिति को समझने और अपनी समस्याओं को एक अलग नजरिए से देखने में सक्षम होने लगी हु। इसने शांति और समझ को वापस लाया है”।
  • “मै बस चाहती थी के सब मै जैसा चाहूँ वैसे हो जाये और छोटी-छोटी बातो पर बहुत ही गुस्सा हो जाती थी। पर जैसे हमारे यह सेशन होने लगे मै बातों को सामनेवाले के नजरिए से भी देखने लगी”।

इसी तरह से और ४ अभिभावकों ने बताया की, इस प्रशिक्षण के वजह से उनमे क्या बदलाव आए। स्व:जागरूकता, स्व:प्रबंधन, जिम्मेदार निर्णय क्षमता इन कौशल का अनुभव उन्होंने अपने भीतर किया।  इस बातचीत के दौरान उन्होंने बताया की :-   

  • “यह मेरा ३ रा साल है, प्रशिक्षण काफी आसान और सरल भाषा में होते है। हमारे बारे में पूछते है, हम अपना हालचाल बता पाते है। बच्ची के साथ साथ मैंने अपने आप में भी बदलाव देखा, मुझे सबके सामने बात करने में काफी हिचक महसूस  करती थी अभी प्रशिक्षण में खुल कर बात कर पाती हु। पर अभीभी कही बाहर जाकर बात करने में डर लगता है, मै इसपर धीरे धीरे काम कर रही हु”। 
  •  “जब से मेरी इस सेशन के बारे में जानकारी बढ़ी है तब से मेरा कॉन्फिडेंस भी बढ़ गया है।  मै अपने और दूसरों की फीलिंग्स के बारे में अच्छे से जानने लगी हु , इससे मुझे बहुत ही ख़ुशी मिल रही है”। 
  •  “मुझे बहुत अच्छा लगता है जब हमको अपने बारे मे बात करने का मौका मिलता है और खुदका ध्यान कैसे रखना है उसपर बात होती है। जब गुस्सा आता है तब मै अपने आप को किसी दूसरे काम में लगाती हु”।  
  • दीदी काफी फरक है, “मै अपने घर पे काफी शांत लगा हु।  जल्दी से कोई फैसला नहीं लेता , थोड़ा वक़्त लगा तो भी चलता है पर मै शांत रहकर फैसला लेता हु”।  

जैसे यहाँ पर भी सामने आया की, बच्चों को सहयोग करने के लिए अभिभावकों को एक अलग तरीके के प्रशिक्षण की जरुरत है जहाँ पर वह खुदका सहयोग कर सके।  जब अभिभावक खुदकी भावनावों को अच्छे से समझ पाएंगे, उनको अच्छे से संभाल पाएंगे, अपने रिश्तों को सवार पाएंगे, शांति से अपने फैसले ले पाएंगे और जहाँ पर जरुरत है वहाँ पर पहल करके समाज के लिए मिलके कुछ कर पाएंगे तब यह वातावरण वह अपने बच्चो के लिए भी एक स्वास्थ्यपूर्ण रूप से बना पाएंगे।  और सही अर्थ से इस समाज को हम आगे ले जा पाएंगे। 


About the authors:

Lekha Menon works as a Social Worker with Khoj Community Learning Center( An Apnishala initiative). She holds an M.A in Social Work with child rights from the Tata Institute of Social Sciences. She comes with over 13 years of teaching experience with Akanksha Foundation and has extensively worked with Lallubhai Compound, Mankhurd Community, where Khoj is situated. Dearly called Lekha didi by her students, families, and team members alike, she loves working with communities towards the holistic development of children. 

Mayuri Golambde, Senior Manager of government partnership and Advocacy at Apni shala Foundation. She loves to advocate for social-emotional Learning and creating different platforms for stakeholders in multiple ways. Sometimes in advocacy, she works with different organisations and part of her role Also involves professional development internally and externally. Mayuri is a Gandhi Fellow and holds a Bachelor of Arts. She is currently pursuing her Masters in Social Work.

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