इतनी सी बात……

सफ़र की वो शुरुआत सी थी,

बातें बहुत सी ज़हन में थी,

ये भी करना है वो भी करना हैं,

Time पर सब कुछ करना है.

बड़ी आसानी से सूखे शब्दों में,

कह देते हैं की हम उन्हें सिखाते है,

पर कुछ ही दिनों में आईना  मेरे सामने था,

वो मेरे क्लास के मेरे हमसफ़र,

Already सब कुछ जानते थे,

Emotion और Empathy पर,

मैं उन्हें क्या ही बताता,

मेरे चेहरे के रंग,

तो वो रोज ही पढ़ लिए करते थे.

बात जो थी, केवल इतनी थी,

सब उन्हें पढ़ाने-सिखाने आते थे,

धीरे-धीरे समझ में आया,

बात तो केवल सुनने की है,

उनकी दुनिया में शामिल होने की है,

केवल उनके लिए present रहने की है,

एक safe space बनाने की है,

बिना शर्म, बिना डर,

भाषा के बन्धनों से आज़ाद,

सही गलत के फेर में बिना पड़े,

उन्हें उनकी बात , उनकी तरह से रखने देने की हैं.

Safe space जो create हुआ,

तब यह experience हुआ,

कैसे कुछ आवाजें दब जाती है,

वो दबी आवाजें जब

अल्फाज़ बनकर बाहर निकलती है,

तो बहुत अन्दर तक छू जाती है,

जरुरत थी तो केवल ऐतबार रखने की,

धीरे-धीरे  वो दबी आवाजें बाहर आई,

कभी किसी किस्से की शक्ल में,

कभी किसी चित्र में,

कभी किसी कविता में,

नहीं तो कभी एक मुस्कुराहट में.

सफ़र का जब आखिरी पढाव सा था,

बात केवल एक ही ज़हन में थी,

ऐतबार कर उन्हें अपने मन का करने देने की है,

उनके साथ, उनके बीच, उनके लिए,

PRESENT रहने की है.

सफ़र की वो शुरुआत सी थी,

बात तो केवल सुनने की है,

उनकी दुनिया में शामिल होने की है,

सफ़र की वो शुरुआत सी थी,

बातें बहुत सी ज़हन में थी,

ये भी करना है वो भी करना हैं,

Time पर सब कुछ करना है.

बड़ी आसानी से सूखे शब्दों में,

कह देते हैं की हम उन्हें सिखाते है,

पर कुछ ही दिनों में आईना  मेरे सामने था,

वो मेरे क्लास के मेरे हमसफ़र,

Already सब कुछ जानते थे,

Emotion और Empathy पर,

मैं उन्हें क्या ही बताता,

मेरे चेहरे के रंग,

तो वो रोज ही पढ़ लिए करते थे.

बात जो थी, केवल इतनी थी,

सब उन्हें पढ़ाने-सिखाने आते थे,

धीरे-धीरे समझ में आया,

बात तो केवल सुनने की है,

उनकी दुनिया में शामिल होने की है,

केवल उनके लिए present रहने की है,

एक safe space बनाने की है,

बिना शर्म, बिना डर,

भाषा के बन्धनों से आज़ाद,

सही गलत के फेर में बिना पड़े,

उन्हें उनकी बात , उनकी तरह से रखने देने की हैं.

Safe space जो create हुआ,

तब यह experience हुआ,

कैसे कुछ आवाजें दब जाती है,

वो दबी आवाजें जब

अल्फाज़ बनकर बाहर निकलती है,

तो बहुत अन्दर तक छू जाती है,

जरुरत थी तो केवल ऐतबार रखने की,

धीरे-धीरे  वो दबी आवाजें बाहर आई,

कभी किसी किस्से की शक्ल में,

कभी किसी चित्र में,

कभी किसी कविता में,

नहीं तो कभी एक मुस्कुराहट में.

सफ़र का जब आखिरी पढाव सा था,

बात केवल एक ही ज़हन में थी,

ऐतबार कर उन्हें अपने मन का करने देने की है,

उनके साथ, उनके बीच, उनके लिए,

PRESENT रहने की है.

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About the author: Kamlesh joined Apni Shala as a programme fellow after finishing his Post Graduation in Education. When Kamlesh is not in class building life skills with children, Kamlesh enjoys  reading random stuff and travelling.

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