By Mayuri Golambde
ज्यादा तर “कैसे हो?” और “मैं ठीक हूँ” ये सवाल-जवाब काफी बार हमें सुनने को मिलते हैं| क्या हम हमेशा “कैसे हो?” यह सवाल पुछने पर वही जवाब दे पाते है जो हमारे भीतर चल रहा है? क्या हम बता पाते हैं कि हम क्या महसूस कर रहे हैं? किस वजह से कर रहे हैं? बता पाना तो बाद की बात हुई, पर क्या इन सारी चीजों के बारे में सोचने के लिए वक्त देते हैं? उसको समझ पाते है? शायद ‘हाँ’ शायद ‘ना’| पर जब इन्ही चीजों पर १०-११ साल के बच्चे बात करने लगें, तब उनकी प्रतिक्रियाएं और सवाल एक गहरी सोच में डालने वाले थे|
क्लास की शुरुआत इसी बिंदु पर हुई कि, “हम कैसा महसूस कर रहे हैं?” लगभग सभी बच्चों का जवाब “अच्छा” या फिर “पता नहीं” था| “अच्छा” मतलब कैसा? यह पूछने पर किसीके पास कोई जवाब नहीं था| फिर गतिविधियाँ शुरू हुईं और बच्चों के जवाब भी और सवाल भी – “दीदी जब मैं और पापा घूमने गए थे तब मैं बहुत खुश था!” “माँ जब मुझे पैसा देती है तब मैं बहुत खुश होता हूँ|” “जब मेरा मेरे दोस्त के साथ झगड़ा होता है तब मुझे बहुत बुरा लगता है|” “जब कोई पेड़ तोड़ता है, तब मुझे अच्छा नहीं लगता|” “जब मुझे कोई गाली देता है तब मुझे बहुत गुस्सा आता है|” “जब कोई मेरा झूठा नाम बताता है तब मुझे बहुत गुस्सा आता है|” “जब बड़ी माँ मेरी माँ पर चिल्लाती है, उसको बुरा बोलती है तब मैं डर जाता हूँ|” “क्लास में टीचर जब मारने के लिए लाठी उठाती है तब मैं डर जाती हूँ |”
“दीदी, कुछ-कुछ बातें मुझे समझ नहीं आती”, एक बच्चे ने पूछा| उस पर मैंने पूछा, “कौनसी बातें?” यह पुछने पर उस बच्चे के साथ और भी बच्चों के सवाल शुरू हो गए| “दीदी बड़े लोग इतना झगड़ा क्यों करते हैं?” “हमें झगड़ा करने पर डाटते क्यों है?” “दीदी,बड़े लोग झूठ बोलते हैं तो उनको अच्छा बोलते हैं पर हमें झूठ बोलने पर मार क्यों मिलती है?” “दीदी मुझे अंधेरे से डर नहीं लगता पर मेरी सहेली को बहुत डर लगता है, ऐसा क्यों?” “एक ही परिस्थिति में हम अलग अलग क्यों महसूस करते है? हम महसूस कैसे करते है?” “कोई और कैसा महसूस करता है, क्या ये हम समझ सकते है?” “दीदी हमारे मम्मी-पापा हम जो महसूस करते है वो समझ पाते है क्या? हम अपनी मम्मी-पापा के मन की बात कैसे समझे?”
उनकी प्रतिक्रियाएं सुनने के बाद हम जाने अंजाने में जो कहते है , करते है, उस बातों का बच्चों पर कितना असर होता है| जितना बच्चे इन सारी चीजो के बारे में सोचते है उसमे से अगर दस प्रतिशत भी हम सोचे तो शायद झगडे, अनबन और मन-मुटाव केलिए जगह नहीं रहेगी और बच्चों के लिए एक स्वस्थ वातावरण का निर्माण हम कर सकेंगे|
About the author: Mayuri has completed the prestigious Gandhi fellowship, and has worked at Masoom, an NGO that works for children attending night schools. She joined Apni Shala as a Programme Manager in 2015.
सोच हि दुनिय को बदलेगि …
यहि बडे बच्चों कि दुनिया बिगडते है…
Let us change ourselves to change the world…
Ultimate observation..
Such observing person is alwz an asset to the institute as well as society…
Hats off to Mayuriji and Apani Shalla
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